बारिश में भी आज कुछ नमी सी है,
ऐ दिल तुझमें कुछ आज कमी सी है,
रुक सी गयी है क्यूँ ये हवाएँ,
बेजान सी जाने क्यूँ लग रहीं हर दिशाएँ,
ना जाने क्यूँ आज छुप गया है सूरज भी बादलों में,
क्यूँ शर्मा के इसने मोड़ ली निगाहें,
सागर भी ले रहा है आज अंगड़ाइयां,
लहरे इसकी कर रही गुस्ताखियाँ,
फिर देखता हूँ जब वो नूर तेरा,
शब्द ढूँढता है यह ज़मीर मेरा,
बेज़ुबान हो जाती यह हस्ती मेरी,
और खिल जाता यह जहाँ तेरा,
हर ज़र्रा तब पुकारता है मज़हब तेरा,
अल्लाह हू,
हू अल्लाह…..