इंसान नही वो कायर है,
अहंकार से भरा हुआ,
बेइमानी में धसा हुआ,
झूठ की बुनियाद पे जिसका,
हो साम्राज्य टिका हुआ,
जात, बिरादरी या भगवान हूँ अल्लाह,
हो कारोबार जिसका सधा,
इंसान नही वो कायर है,
शर्मसार जिससे ये आयत है,
छीन कर गुड्डे गुड्डियाँ जिसने थमाईं,
असला, बारूद, भीख का कटोरा,
बंद दरवाज़ों में दफ़्न किए,
कई सपने बेपनाह,
इंसान नही वो कायर है,
देवी कह कर पूजता वोहि है,
लक्ष्मी भी तो वोहि है,
फिर क्यूँ नही सोचता है,
अबला भी तो एक प्राणी है,
जन्म भी जिसका नग्वारा है,
पल्लू ही जिसका आँगन है,
तेज़ाब ने भी उसका ना जाने क्या क्या बिगाड़ा है,
इंसान नही वो कायर है,
हवाओं का भी आज चिरहरण हुआ है,
भुखमरी, अकाल, विनाश का धुआँ है,
इंसान ही इंसान का दुश्मन बना है,
सीमाओं पे ही हर वक्त पहरा है,
हूँ मैं भी, शायद हो तुम भी,
हो ख़ौफ़ जहां, वहाँ होगा और क्या भी,
कोशिश आज चलो मिलके करें सभी,
बूँद बूँद कर सागर भरे ही तो भी,
ऊँच नीच, क्या तेरा मेरा,
हो सारा संसार अपना रैन बसेरा,
होगी शायद आज भी कहीं इंसानियत छुपी हुई,
होगी शायद आज भी कहीं करुणा छुपी हुई,
ख़ौफ़ को आज जीतने नही देंगे,
तुम भी हो, मैं भी हूँ, हम सब भी हैं,
आज बहादुर सभी,
इंसान का इंसान से प्यार,
हो मंत्र सबका यही….
Jay baat!!
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😁😁
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Never read anything so powerful in a long time.
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Thank you Asha. 😊
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