दिखते हैं किसी को आसमान में परिंदे,
हसरतों से भरे,
उजाले से सजे,
होता है किसी का आसमान गहराइयों सा भी,
अनंत, शून्य, अनदेखा,
पर शायद होगा इन्ही आँखों का क़सूर,
समझ के जो ऐसी मुख़बरि की होगी,
तेरा, मेरा, है क्या सबका एक जैसा आसमान….?

दिखते हैं किसी को आसमान में परिंदे,
हसरतों से भरे,
उजाले से सजे,
होता है किसी का आसमान गहराइयों सा भी,
अनंत, शून्य, अनदेखा,
पर शायद होगा इन्ही आँखों का क़सूर,
समझ के जो ऐसी मुख़बरि की होगी,
तेरा, मेरा, है क्या सबका एक जैसा आसमान….?