दो पंख

मुझ में कुछ तेरा भी था,
तुझमें मैं सारा सा,
ना जाने कहाँ से आया था तू,
ना जाने कहाँ गया तू,
अब उम्र जो रह गयी है मेरी,
बस सोचूँगा हर रोज़ ये,
अगली मुलाक़ात शायद होगी जब,
फ़िर से खिल उठेंगे हम दोनो,
सूरज नहीं ढलेगा कभी,
और उड़ने को होंगे हमारे दो पंख…..

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