रोशनी

रोशनी का भी क्या कोई मुक़ाम होगा,

ना जाने क्यूँ फिर ये रोशन कर जाती है कई सर्द रातें,

बेजान में फूँक जाती है ये बेबाक़ जान,

इल्म ही नहीं इसे शायद,

क्या मुकम्मल इसकी बाज़ुएँ हैं,

ये है तो सब है,

ये नहीं तो क्या है…..