कुछ तो होगा शायद,
की बिखर के भी मैं टूटता नहीं,
है कहीं तो ज़ोर बाक़ी,
कहीं कोई कतरा शायद हार मानने को त्यार नहीं,
तुम ज़ुल्म करते हो,
मैं साँस लेता हूँ,
कमबख़्त ये दिमाग़ ही है जिसने बचा रखा,
वरना मदहोशी में ए दिल तूने तो अब तक मेरा असमान ही जलाना था…..
Wah wah! Shayar sahib
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