मैं आऊँगा…..

दीवारों से हारकर जब जब मैं सो जाऊँगा,
तक़दीरों का राग लेके जब रोने लग जाऊँगा,
ढाढ़स बांधने जब चमगादढ़ मेरी आँखें बंद कर जाएँगे,
तब तब निराशाओं का सीना चीर के मैं आऊँगा,
मैं हूँ मिट्टी का मिट्टी है मेरी माँ,
क्या हुआ जब धूल पी के हैं सींचे इसे रंग लाल,
मिट्टी का हूँ तो दिखता हूँ,
हवा में उड़ जाते पंख,
क्या फ़र्क खून मैं मेरे या जो पसीना है लाल,
है नहीं डूबा सका समंदर भी जो अटल मेरा मत्था,
लोहे का दिल लेके अक्सर मैंने दर्द पिया,
ना जाने कहाँ टूट गयी थी चप्पल अब नंगा मेरा ये पाँव,
है देख चुका सारा संसार हर जगह मेरे निशान,
मैं हूँ मिट्टी का मिट्टी है मेरी माँ,
तो क्या हुया जो मिल गया खो गया नाम-ओ-निशान,
इक्का दुक्का करके इकट्ठा मैं फ़िर से जुड़ जाऊँगा,
घुटन से जब भर जाएगा मेरा आसमाँ,
हो रात काली और दिन भी साँवला,
डूब रही हो सारी आस,
तब तब निराशाओं का सीना चीर के मैं आऊँगा,
तब तब निराशाओं का सीना चीर के मैं आऊँगा,

15 thoughts on “मैं आऊँगा…..

  1. वाह! यह एक बहुत ही प्रेरक कविता है। ऊर्जा और शक्ति से भरपूर। यह किसी को भी लड़ने का आत्मविश्वास दे सकता है।

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    1. धन्यवाद Nitesh भाई। इसे लिकने से पहले मैं खुद बड़ा ख़राब महसूस कर रहा था। है कई बार आता है ऐसा वक्त। पर सोचा उस सोच को इस कविता मैं बदला जाए। मुझे बेहद ख़ुशी हुयी की आपको यह पसंद आयी। आशा करता हूँ आप ठीक होंगे। 😍

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      1. निश्चित रूप से कई बार ये कठिन क्षण वास्तव में आपके विचारों को बढ़ाते हैं। यह निश्चित रूप से मेरे द्वारा पढ़ी गई सबसे प्रेरक कविताओं में से एक है। मैं पूरी तरह से ठीक हूं । आशा है कि आप भी अच्छे होंगे। 😊

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    1. धन्यवाद सिरजी। मुझे बेहद ख़ुशी हुयी की आपको यह लाइनें पसंद आयीं। आशा करता हूँ आप ठीक होंगे व सुरक्षित होंगे। 😇

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