हम लबों से जो ना कह पाए,
हो सकती थी जो हसीन दास्ताँ,
ज़ुबान धोखा दे जाती है ना जाने क्यूँ,
धीमी बेहती नदी में जब कभी,
अक्स तेरा दिख जाता है जो…….
हम लबों से जो ना कह पाए,
हो सकती थी जो हसीन दास्ताँ,
ज़ुबान धोखा दे जाती है ना जाने क्यूँ,
धीमी बेहती नदी में जब कभी,
अक्स तेरा दिख जाता है जो…….
Very beautiful.
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Thank you Asha. 🙂
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