तारीखें।।

शाम ही कुछ अजीब है बुझी बुझी,
देखता हूँ मैं उसे, 
नज़रें झुकाए वो बैठी है मेरे सामने,
शब्द निकलते हैं नहीं,
शाम भी कुछ अजीब है बुझी बुझी,
नज़रें उठाके ज़रा उन्होंने आज हमें कुछ इस तरह देखा,
नज़रें भी कुछ अजीब हैं,
शब्द निकलते हैं नहीं,
और तारीखें लिख जाते हैं।।।।।

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